मंगलनाथ मंदिर, मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित है, एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यह मंदिर भगवान मंगल को समर्पित है जो मार्स के नाम से भी जाना जाता है। 

क्या है इसके पीछे की कहानी 

मत्स्य पुराण के अनुसार मंगलनाथ ही मंगल का जन्म स्थान माना गया है। कहा जाता है कि अंधकासुर नामक दैत्य को भगवान शिव का वरदान प्राप्त था कि उसके रक्त की बूंदों से सैकड़ों दैत्य जन्म लेंगे। इसी वरदान के चलते अंधकासुर पृथ्वी पर उत्पात मचाने लगा। इस पर सभी ने भगवान शिव से प्रार्थना की। 

 उन्होंने अंधकासुर के अत्याचार से सभी को मुक्त करने के लिए उससे युद्ध करने का निर्णय लिया। दोनों के बीच भयानक युद्ध हुआ। इस युद्ध में भगवान शिव का पसीना बहने लगा जिसकी गर्मी से धरती फट गई और उससे मंगल का जन्म हुआ। इस नवउत्पन्न मंगल ग्रह ने दैत्य के शरीर से उत्पन्न रक्त की बूंदों को अपने अंदर सोख लिया। इसी कारणवश मंगल का रंग लाल माना गया है।

 मंगल दोष का निवारण

इस मंदिर में किसी भी तरह के अमंगल को मंगल में बदलने का सामर्थ्य है। यहाँ भारत ही नहीं अपितु विदेशों में रहने वाले लोग भी अपनी कुंडली के मंगल दोष के निवारण के लिए आते हैं।

उज्जैन को पुराणों में मंगल की जननी कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में मंगल भारी रहता है, वे अपने अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए मंगलनाथ मंदिर में पूजा-पाठ करवाने आते हैं।

मंगल का संस्कृत में अर्थ होता है उल्लास, खुशी या जोश। मंगल ग्रह को भी इसी नाम से जाना जाता है। कर्क रेखा पर स्थित इस मंदिर को देश का नाभि स्थल माना जाता है। 

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