धर्म ग्रंथों के अनुसार माता सती के अंग जहां-जहां गिरे, वहां शक्तिपीठ के रूप में उनकी उपासना की जाती है।

हिंदू धर्म में कुल 51 शक्तिपीठों की मान्यता है। इन्हीें में से एक हैं उज्जैन स्थित मां हरिसिद्धि, जहां माता सती की कोहनी गिरी थी।

 क्या है यहाँ की कहानी 

गुजरात स्थित पोरबंदर से करीब 48 किमी दूर मूल द्वारका के समीप समुद्र की खाड़ी के किनारे मियां गांव है। खाड़ी के पार पर्वत की सीढिय़ों के नीचे हर्षद माता (हरसिद्धि) का मंदिर है। मान्यता है कि उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य यहीं से आराधना करके देवी को उज्जैन लाए थे। 

तब देवी ने विक्रमादित्य से कहा था कि मैं रात के समय तुम्हारे नगर में तथा दिन में इसी स्थान पर वास करूंगी। इस कारण आज भी माता दिन में गुजरात और रात में मध्य प्रदेश उज्जैन में वास करती हैं।

 इसलिए पड़ा हरसिद्धि नाम

स्कंदपुराण में कथा है कि एक बार जब चंड-प्रचंड नाम के दो दावन जबरन कैलास पर्वत पर प्रवेश करने लगे तो नंदी ने उन्हें रोक दिया। असुरों ने नंदी को घायल कर दिया। इस पर भगवान शिव ने भगवती चंडी का स्मरण किया।

शिव के आदेश पर देवी ने दोनों असुरों का वध कर दिया। प्रसन्न महादेव ने कहा, तुमने इन दानवों का वध किया है। इसलिए आज से तुम्हारा नाम हरसिद्धि प्रसिद्ध होगा।

सम्राट विक्रमादित्य माता हरसिद्धि के परम भक्त थे। अफ़वाह है कि हर बारह साल में एक बार वे अपना सिर माता के चरणों में अर्पित कर देते थे, लेकिन माता की कृपा से पुन: नया सिर मिल जाता था। 

 विक्रमादित्य ने 11 बार चढ़ाया सिर

 बारहवीं बार जब उन्होंने अपना सिर चढ़ाया तो वह फिर वापस नहीं आया। इस कारण उनका जीवन समाप्त हो गया। आज भी मंदिर के एक कोने में 11 सिंदूर लगे मुण्ड पड़े हैं। कहते हैं ये उन्हीं के कटे हुए मुण्ड हैं।

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